धनतेरस पर यमराज और धन्वंतरि की कथा | Yamraj and Dhanvantri Katha in Hindi

हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रोदिशी तिथि के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ| इस लिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है| यह त्यौहार दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है| दिवाली से पहले धनतेरस पूजा को बहुत महत्व होता है| इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ-साथ कुबेर जी की भी पूजा की जाती है| धनतेरस पर भगवान यमराज को दीपदान किया जाता है| इस दिन की मान्यता यह है की जो इस दिन जो दीपदान करता है उसे अकाल मृत्यु का भव नहीं सताता| इस मान्यता के पीछे पुराणों में वर्णित एक कथा भी है जो इस प्रकार है:-

यमराज और धन्वंतरि की कथा

यमराज और धन्वंतरि की कथा:- प्राचीन समय की बात है की एक बार यमराज ने अपने दूतो से पूछा कि प्राणियों के प्राण लाते समय तुम्हे कोई दुःख नहीं होता| तुम्हारे मन में दया भाव उतपन नहीं हुआ कि हमे प्राण नहीं लेने चाहिए| तो वह कुछ समय सोच कर बोले नहीं महाराज ! हमे दया भाव से क्या मतलब| हम तो बस आपकी आज्ञा का पालन करने में लगे रहते है| यमराज ने दुबारा पूछा तो उन्होंने बताया कि एक बार ऐसी घटना घटी कि जिसे सुनकर हमारा ह्रदय कांप उठा| उन्होंने बताया कि एक बार एक राजकुमार के विवाह के चौथे दिन ही उसके प्राण लेन पड़े थे तो हमे दुःख हुआ था तो यमराज जी ने कहा पूरी बात बताओ तो दूत ने पूरी बात विस्तार से सुनाई:-

उन्होंने बताया कि एक बार हंस नाम का राजा खेलते खेलते पड़ोसी राज्य कि सीमा में पुहंच गया| भूखा प्यासा राजा हंस पड़ोसी राजा हेमराज के यही पुहंचा| हेमराज ने राजा हंस का बहुत स्वागत किया| उसी दिन हेमराज के घर एक पुत्र का जन्म हुआ| राजा हेमराज ने हंस के आने को शुभ माना| और कुछ दिन उसको वही रहने का आग्रह दिया|पुत्र होने की ख़ुशी में जब ६ दिन बीत गए तो राजा ने एक पूजा करवाई जिस में कुछ विद्वान् पंडित भी शामिल थे| जब पूजा चल रही थी तो कुछ विद्वानों पंडितो ने यह भविष्यबाणी की कि जब राजकुमार कि शादी होगी तब शादी के चौथे दिन ही उस राजकुमार कि मृत्यु हो जायगी| यह सुन कर सभी लोग बहुत दुखी हुए| यह सुनकर राजा हंस ने हेमराज को राजकुमार कि रक्षा का वचन दिया| उसने राजकुमार के रहने कि विवस्था यमुना के तट पर की| वह यमुना तट की गुफा में ही बड़ा हुआ| एक दिन सयोग से ही महाराजा हंस की बेटी युमना तट के आस-पास घूम रही थी| उसने राजकुमार को देखा तो वह उसपर मोहित हो गयी| उनकी बात हेमराज को पता चली तो उसने अपने पुत्र का विवाह राज कुमारी से कर दिया| विवाह के चौथे दिन ही राजकुमार मर गया| उसको अपने प्राण हरने पड़े| अपने पति की मृत्यु देख वो नवविवाहिता बिलख-बिलख कर रोने लगी| उसका करुण-विलाप सुनकर हमारा हिरदय कांप उठा| हमने जीवन में कभी ऐसी जोड़ी नहीं देखी थी| उसके प्राण लाते समय हम अपने आंसुओं को नहीं रोक सके| यह सुनकर फिर यमराज ने कहा की क्या करे हमे विधि के विधांता का पालन करना ही होता है| हमे विधि के विधान अनुसार उसकी मर्यादा निभाकर ऐसे कार्य करने ही होते है| तो एक यमदूत ने बड़ी उतसक्तापूर्वक यमराज से पूछा की कोई ऐसा उपाय नहीं है कि अकाल मृत्यु से बचा जा सके| इस पर यमराज ने बताया कि हां उपाय तो है| उन्होंने बताया कि धनतेरस के दिन यमुना में स्नान करके यमराज और धन्वंतरि का पूजन दर्शन पूरी विधि विधान्तो के अनुसार करे और सध्या समय दीपक भी जगाये और हो सके तो यह व्रत भी रखे| जिस घर में यह पूजन होगा उस घर में कोई भी अकाल मृत्यु नहीं होगी|

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की भी पूजा कि जाती है| पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए| उनके प्रकट होने के ही उपलक्ष में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है| धन्वंतरि भगवान विष्णु का अवतार है जो अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते है| एक समय की बात है की भगवान विष्णु ने राजा बलि से देवताओ को मुक्ति दिलाने के लिए वामन अवतार लिया था और उनसे भिक्षा मांगनी शुरू की| लेकिन गुरु शुक्राचार्य को भगवान विष्णु की चाल का पता चल गया| उसने राजा बलि को वामन बेष में आये भगवान विष्णु को भिक्षा देने से इंकार कर दिया| लेकिन राजा बलि ने ऐसा नहीं किया| राजा बलि ने वामन बेस में आये भगवान विष्णु को दान देने का संकल्प किया| भगवान विष्णु ने एक पग में सारी धरती और दूसरे पग में सारे आकाश को नाप दिया| तो राजा बलि ने उनसे आग्रह किया की वह अपना तीसरा पग उनके सिर पे रख दे ताकि उनका वचन पूरा हो सके| इस प्रकार भगवान विष्णु ने अपनी माया से राजा बलि का निर्धन कर दिया| उन्होंने फिर से देवताओ का यश और वैभव वापिस लौटाया| इस लिए इसी ख़ुशी में धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है|

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