अहोई अष्टमी व्रत कथा हिंदी| Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi

अहोई अष्टमी व्रत कथा हिंदी| Ahoi Ashtami Vrat Katha in Hindi

अहोई शब्द का अर्थ होता है होनी को अनहोनी बनाना| यह व्रत करवाचौथ के चार दिन बाद मनाया जाता है| यह व्रत केवल संतान वाली महिलाएं ही रख सकती है| यह व्रत बच्चो के सुख के लिए रखा जाता है| इस व्रत को करने से परिवारिक सुख की भी प्राप्ति होती है| इस व्रत में अहोई माँ का चित्र बना के पूजा की जाती है| कुछ औरते अहोई माँ के चित्र के साथ अपने बच्चे का चित्र भी बना के पूजते है| इसे करवाचौथ के समान ही महान व्रत कहते है| पूजा करने के बाद इस व्रत की कथा की जाती है| यह कथा इस प्रकार है :-

अहोई अष्टमी व्रत कथा हिंदी| Ahoi Ashtami kathac in hindi

अहोई अष्टमी व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है की प्राचीन काल में एक शाहूकार रहता था| उसके सात बेटे और सात बहुएं थी| शाहूकार की एक बेटी भी थी जो दिवाली पे अपने ससुराल से मायके आई हुई थी| साहूकार की पत्नी घर को लीपने के लिए जंगल में मिटटी लेने गयी| उसके पीछे-पीछे सातों बहुए और शाहूकार की बेटी भी चली गयी| शाहूकार की बेटी भी मिटटी को खोदने लगी| जो ही उसने मिटटी को खुरपे के साथ खोदना शुरू किया वः खुरपा स्याहु(साही) के बच्चे को लग गया| क्यों की जहां शाहूकार की बेटी ने मिटटी को खोदा था वहा स्याहो अपने साथ बच्चो के साथ रहती थी| जिनमे से एक बच्चा शाहूकार के बेटी के खुरपा लगने की वजह से मर गया| बच्चे के मरने पर शाहूकार की बेटी को बहुत दुःख हुआ| स्याहो को गुस्सा आ गया और उसने शाहूकार की बेटी को शाप दे दिया| उसने कोख बांधने का श्राप दे दिया|उसने कहा की तुमने मेरे बच्चे को मारा है तुम्हे भी दुःख भोगना पड़ेगा| परन्तु जो कुछ होना था वो हो चूका था| यह भूल तो उससे अनजाने में हुई थी| दुखी मन से वह घर लौट आई| पश्चाताप के कारण वह मिटटी भी नहीं लाई| जब वह घर आती है तो शाहूकार की पुत्री का पुत्र और शाहूकार के भी सातों पुत्र मर जाते है| इस प्रकार की घटना देख सेठ-सेठानी अत्यंत शोकाकुल हो उठे| इन दोनों ने किसी तीर्थ स्थान पे जाकर अपने प्राणो का विसर्जन कर देने का मन में संकल्प कर लिया|ऐसा निष्ठा कर के सेठ-सेठानी पैदल ही घर से चल पड़े| चलते-चलते उनका शरीर पूर्ण रूप से अशक्त हो गया लेकिन फिर भी वह आगे-आगे बढ़ते गए| थोड़ी ही दूर जा के वह पूर्ण रूप से थक गए| उनके चलने की शक्ति अब ख़त्म हो गयी| सेठ और सेठानी रस्ते में ही मुर्शित हो कर गिर पड़े| उन दोनों की इस दयनीय दिशा को देख कर भगवान करुणानिधि दयालु हो गए| उनको सेठ और सेठानी पे दया आ गयी| भगवान करुणानिधि ने भविष्यबाणी की कि तुम्हारी पुत्री से मिटटी खोदते समय सेही का बच्चा अनजाने में मारा गया था| जब मिटटी को खोदा गया तो तू भी अपनी पुत्री के पास थी| जिन कारण तुम दोनों को अपने बच्चो का कष्ट सहना पड़ा| इस लिए अब आप दुखी न होकर अपने घर जाओ| भगवान ने आज्ञा दी है कि तुम घर जा कर गऊ माता कि सेवा करो और अहोई माता कि अहोई अष्टमी आने तक पूजा करो| सभी जीवो पर दया करो| दया भाव रखो| किसी को अहित ना करो| यदि तुम मेरे कहे अनुसार आचरण करोगे तो तुम्हे संतान सुख प्राप्त हो जायगा|इस आकाशवाणी को सुनकर सेठ और सेठानी को कुछ धैर्य हुआ| और वह भगति का स्मरण करते हुए अपने घर चले गए| यह आकाशवाणी के अनुसार वह सारे कार्य करने लगे| उन्हों ने पूरी श्रदा के साथ अहोई माता कि पूजा कि जब अहोई अस्टमी आई तो उन्होंने विधि के साथ व्रत रखा और अहोई माँ उनसे बहुत प्रस्न हुई और उनको पुत्र होने का आशीर्वाद दे दिया| इसके बाद उसे सात पुत्रो कि प्राप्ति हुई| तब से लेकर अभी तक यह परम्परा यह प्रथा चली आ रही है|

 

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